सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन
विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 29 सितंबर
2017 को द्वितीय मासिक परिचर्चा का आयोजन किया गया । इसका विषय ‘हिन्दी साहित्य में थर्ड जेंडर’ रखा गया था ।
परिचर्चा में विभाग के अलावा अन्य विभागों के भी छात्र/छात्राएं व शोधार्थी भी भाग
लेते हैं । कार्यक्रम में किन्नरों के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक
व वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा कि गई । इसमें एम.फिल हिन्दी के शोधार्थी कपिल
कुमार गौतम ने अपना सारगर्भित शोध-आलेख का वाचन किया । उन्होने ने किन्नरों के
इतिहास को संदर्भित करते हुये उनके मिथकीय प्रयोगों को विवेचित किया । गौरतलब है
कि किन्नरों का इतिहास बहुत पुराना है । महाभारत, रामायण, उपनिषदों में भी इनकी गाथाएँ देखने व सुनने को मिलती हैं । ऐतिहासिक तथ्यों
के अनुसार, हिंदू और मुसलिम शासकों द्वारा किन्नरों का इस्तेमाल
खासतौर पर अंत:पुर ओर हरम में रानियों की पहरेदारी के लिए किया जाता था। इसके पीछे
उनकी सोच यह थी कि रानियां पहरेदारों से अवैध संबंध स्थापित नहीं कर पाएं । उस दौर
में राजाओं द्वारा काफी नौजवानों के यौनांग काटकर उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था ।
दिल्ली की सल्तनत के दौरान किन्नर महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं ।

अलाउद्दीन खिलजी के
शासनकाल में किन्नर वरिष्ठ सैनिक अधिकारी रहे हैं । खिलजी का एक प्रमुख पदाधिकारी मलिक
गफूर था, जो किन्नर था । वह खिलजी का दायां हाथ माना जाता था
। उसी के प्रयासों से खिलजी ने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया । सामाजिक
संदर्भ में इन्हें बहिष्कृत कर दिया गया है । अनीश कुमार ने कहा कि हमें उनके
प्रति सोच बदलने कि आवश्यकता है । जब हम किसी को प्रकृति प्रदत्त लिंग के आधार पर
भेदभाव करते हैं तो निश्चय ही हम उनके मनवाधिकारों का हनन कर रहे होते हैं । किन्नरों
को लेकर भारतीय समाज में भिन्न-भिन्न तरह की भ्रांतियां हैं । मिथक और इतिहास में
भी इनकी खास तरह की उपस्थिति है । महाभारत का शिखंडी योद्धा था । जिसकी मदद से
अर्जुन ने भीष्म पितामह का वध किया था । वह आधा औरत और आधा मर्द यानि किन्नर था ।
अर्जुन ने अपने अज्ञातवास का एक साल का समय भी किन्नर का रूप धारण कर वृहन्नला के
नाम से बिताया था । कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में किन्नरों का उल्लेख किया है । उस
समय राजाओं ने किन्नरों का अपने निजी सुरक्षाकर्मी के तौर पर तैनात किया हुआ था
तथा उनका इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जाता था । इस अवसर पर विभाग के पीएचडी
शोधार्थी अनीश कुमार, एम.फिल. शोधार्थी दिनेश अहिरवार व अनिल
अहिरवार सहित कई छात्र/छात्राएं उपस्थित थे ।
प्रस्तुति
अनीश कुमार
पीएचडी शोध छात्र