सांची
बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 31 अक्तूबर 2017
को तृतीय मासिक परिचर्चा का आयोजन किया गया । इसका विषय ‘अशोक वाजपेयी की कविता’ रखा गया था । मुख्यतः अशोक वाजपेयी
के कविता संग्रह ‘कहीं कोई दरवाजा’ पर बातचीत की गई । परिचर्चा में
विभाग के अलावा अन्य विभागों के भी छात्र/छात्राएं व शोधार्थियों ने भाग लिया । इसमें
समकालीन कविता के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक व वर्तमान परिस्थितियों
पर चर्चा की गई । इसमें एम.फिल हिन्दी के शोधार्थी अनिल कुमार अहिरवार ने अपना
सारगर्भित किन्तु संक्षिप्त शोध-आलेख का वाचन किया । वहीं पीएचडी शोधार्थी अशोक कुमार
सखवार ने उनकी कविताओं को आधुनिक संदर्भों से जोड़ते हुए उसकी प्रासंगिकता पर चर्चा
की ।
पीएचडी शोध छात्रा सुनीता गुरुङ ने उनकी कविताओं में परंपरा व स्त्री चेतना के
संदर्भों को उल्लेखित किया । एम.फिल शोधार्थी दिनेश कुमार अहिरवार ने सम्पूर्ण कविता
संग्रह पर अपना एक शोध आलेख प्रस्तुत किया । जिसमें वह सभी पक्षों को व्याख्यायित किया
। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने कविताओं की व्याख्या करते हुए उन्हें
व्याख्यायित किया । इस संग्रह मे अशोक वाजपेयी जी की विभिन्न दृष्टियाँ उद्घाटित हैं
। यह कविता संग्रह नाउम्मीद में उम्मीद की एक रोशनी है । अंधेरे में उसे चीरते हुए
स्वच्छ उजाले की उम्मीद है । पीएचडी शोधार्थी अनीश कुमार ने कहा कि इन्हें वैभव, ऐश्वर्य, आभिजात्य, देह और पार्थिकता का कवि कहा जाता
है । इस कविता संग्रह में शब्द, कविता, संबंध, प्रकृति, प्रेम और धरती के अस्तित्व की बात
की गई है । वाजपेयी जी प्रेम को एकाकार करने वाले कवि हैं । इनका समकालीन कवियों में
महत्वपूर्ण स्थान है । यह कवितायें सभी अस्थिरताओं के बीच शांत या सुस्थिरता को पाना
चाहती हैं । इनका महत्वपूर्ण चिंतन मृत्युबोध को भी लेकर भी है । परिचर्चा का संचालन
अनीश कुमार ने किया ।
रिपोर्टिंग
व प्रस्तुति
अनीश
कुमार
पी-एच.डी.
शोध छात्र
