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विभाग द्वारा अपने ‘मासिक परिचर्चा’ के अंतर्गत आज दिनांक 31 अगस्त 2017
को पहली खुली परिचर्चा आयोजित की गई । इसका मुख्य विषय “खड़ी बोली का उद्भव और
विकास” था । विषय के आधार पर उसकी उत्पत्ति व विकास के चरण, भाषिक योगदान तथा उसके वर्तमान
स्वरूप पर बातचीत की गई । इसमें विभाग के शोधार्थी के अलावा विश्वविद्यालय के अन्य
विभागों के भी शोधार्थी व विद्यार्थी शामिल हुए । परिचर्चा पूरी तरह से खुली रखी
गई थी, इसमें किसी कोई कोई समय का बंधन नहीं
था । परिचर्चा के बाद सवाल जबाब का सत्र रखा गया जिसमें कई प्रश्न उभरकर सामने आए
। सर्वप्रथम विभाग के एम.फिल. शोधार्थी कपिल कुमार गौतम ने अपने सारगर्भित शोध
आलेख के माध्यम से विषय के सम्पूर्ण क्षेत्र को व्याख्यायित किये । कपिल ने सवाल
रखा कि जिस समय खड़ी बोली अपने विकास के अवस्था में थी उस समय ब्रज व अवधि का
सम्पूर्ण काव्य क्षेत्र पर अधिकार था । आखिर ऐसा क्या कारण था कि खड़ी बोली को ही
राजभाषा व मातृभाषा के रूप में दर्जा दिया गया । खड़ी बोली के प्रारम्भिक चरण क्या
थे ।
पीएचडी शोधार्थी रजत शर्मा ने भी अपने आलेख का वाचन किए । उन्होंने बताया कि
जिस प्रकार पश्चिमी देशों में एक व्यवस्था के तहत सभी कार्य संपादित किए जाते हैं, उसी तरह के व्यवस्था परिवर्तन के
गुण खड़ी बोली में भी मिलते हैं । इसी तरह सुनीता गुरुङ, दिनेश अहिरवार, शेषनाथ वर्णवाल ने अपने विचार रखे
। पीएचडी शोधार्थी अशोक सखवार ने कहा कि खड़ी बोली एक सहज व सामान्य जनमानस की भाषा
है तथा खड़ी बोली आज एक सम्मृद्ध व वैज्ञानिक भाषा है । इसे इसी रूप में स्वीकार
करना चाहिए । अंत में विभाग के अध्यक्ष डॉ.
राहुल सिद्धार्थ ने कहा कि पंत द्वारा लिखित पल्लव की भूमिका का खड़ी बोली के
योगदान में काफी योगदान है । इसे उसका घोषणा पत्र भी कहा जाता है । उन्होंने पल्लव
से कुछ पक्तियों के माध्यम से खड़ी बोली के विकास यात्रा को समझाने कि कोशिश की । संविधान
के अनुसूचियों को समझाया । कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन पीएचडी शोधार्थी अनीश
कुमार ने किया ।
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प्रस्तुति
अनीश
कुमार
पीएचडी
शोधार्थी, हिन्दी


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