Thursday, 15 November 2018

हिन्दी विभाग में मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस - 2018

          सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 09 अगस्त 2018 को विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया । कार्यक्रम का आयोजन हिन्दी विभाग द्वारा किया गया था । ज्ञातव्य है की सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में घोषित किया है । कार्यक्रम की शुरुआत में हिन्दी विभाग के शोधार्थी अनीश कुमार ने आदिवासी दिवस की महत्ता व उसके बारें में संक्षिप्त जानकारी दी । बताया कि विश्व में अफ्रीका के बाद सबसे ज्यादा आदिवासी भारत में हैं जो भारत कि कुल जनसंख्या के लगभग 7 प्रतिशत से भी अधिक हैं । आजकल आदिवासियों को वनवासी कहने का चलन काफी बढ़ गया है जो उनके मूल भावना के साथ खिलवाड़ लगता है । इसपर आपत्ति जताते हुए अनीश कुमार ने कहा कि आदिवासी ही इस देश के मूलनिवासी हैं । आदिवासियों का इतिहास बहुत लंबा और सम्मृद्ध है । आज हम अपने को उत्तर आधुनिक होने का दावा करते हैं लेकिन वह सभी संस्कृति आदिवासियों के यहाँ बहुत पहले से पाई जाती है । 

इसी क्रम में बौद्ध अध्ययन विभाग के शोधार्थी शेषनाथ वर्णवाल ने झारखंड के आदिवासियों के प्रति सरकार कि उदासीनता व तात्कालिक स्थिति के बारें में बताया । बताया कि आज सरकारें उन्हें उनकी ही जमीन से बेदखल कर रही है । सरकारी योजनाएँ सरकार सही तरीके से लागू नहीं कर पा रही है । फिर भी आये दिन विकास के नाम पर उनको विस्थापित किया जा रहा है । उन्होंने बताया हम एक आदर्श समाज की कल्पना करते हैं कि ऐसा समाज हो लेकिन आदिवासी समाज वैसा है । झूठे विकास के नाम पर उनको प्रकृति से अलग नहीं किया जाना चाहिए । पीएचडी योग के शोधार्थी रंजीत कुमरे ने अपनी आप बीती सुनाई । आदिवासियों को आज भी मुख्य धारा के विकास का दंश झेलना पड़ रहा है । जबकि वे हमेशा से उदारवादी नीति के पक्ष में रहे हैं । अँग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष व अधिष्ठाता डॉ. नवीन मेहता जी ने अँग्रेजी साहित्य में वर्णित आदिवासियों कि कथा व्यथा को निर्देशित करते हुए मध्य प्रदेश के आदिवासियों कि तात्कालिक स्थिति से अवगत कराया । कहा कि आज हम जिस भूमि पर बैठ कर बाते कर रहे हैं वह भूमि गोंडवाना लैंड के नाम से इतिहास में दर्ज है । हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने निर्मला पुतुल और वंदना टेटे कि कविताओं का पाठ करते हुए आदिवासी समुदाय को समझाने का प्रयास किया । कहा कि यह भारत वर्ष आदिवासियों कि रही है । लेकिन बिडम्बना आज यह है वे लोग अपनी ही भूमि पर शरणार्थी कि तरह जीवन जीने को अभिशप्त हो गए हैं । इसी तरह विश्वविद्यालय के शोधार्थी अशोक कुमार सखवार, कपिल कुमार गौतम आदि ने भी अपने विचार रखे । इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कई शोधार्थियों विद्यार्थियों व कर्मचारियों ने हिस्सा लिया । कार्यक्रम का संयोजन, संचालन व धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग के शोधार्थी अनीश कुमार ने किया व रिपोर्टिंग शेषनाथ वर्णवाल ने किया ।

प्रस्तुति
अनीश कुमार
पीएचडी हिन्दी विभाग   

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