Wednesday, 30 August 2017

हलाला प्रथा पर जनसत्ता के रविवारी में प्रकाशित शोध आलेख

27 अगस्त 2017 के अंक में 


कपिल कुमार गौतम को मिला तृतीय स्थान



            सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, बारला, रायसेन के खेल विभाग द्वारा हाकी के महानतम जादूगर मेजर ध्यानचन्द्र की जन्मशती (राष्ट्रीय खेल दिवस, 29 अगस्त 2017) के अवसर पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । जिसका थीम युवा और वर्तमान खेल परिदृश्य था । इसमें विश्वविद्यालय के कुल 11 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया । कार्यक्रम के अंत में परिणाम की घोषणा की गई जिसमें हिन्दी विभाग के एम.फिल. शोधार्थी कपिल कुमार गौतम को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ । इस उपलब्धि पर उन्हें हिन्दी विभाग प्रभारी व समस्त विद्यार्थी/शोधार्थी द्वारा बधाई दिया गया । हिन्दी विभाग प्रभारी ने उन्हें भविष्य में ऐसे ही बढ़ते रहने की कामना करते हुए उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनायें दी । 

प्रस्तुति 
अनीश कुमार
पी-एच.डी. शोधार्थी 

Wednesday, 9 August 2017

विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विचार संगोष्ठी का आयोजन

      आज दिनांक 09/08/2017 को हिंदी विभाग, साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय बारला, रायसेन में विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विचार संगोष्ठी  का आयोजन किया गया । इसकी अध्यक्षता, हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा की गयी कार्यक्रम का संचालन करते हुए पी-एच.डी शोधछात्र हिंदी अनीश कुमार ने कार्यक्रम की रुपरेखा बताई । सर्वप्रथम पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र रजत शर्मा ने आदिवासी समुदाय के प्रकृति से जुड़े होने की बात कही । वहीं पी-एच.डी. योगा शोधछात्र उमाशंकर कौशिक ने बताया आधिवासी समुदाय प्रकृति से जुड़ा हुआ समाज हैं । वह अपनी चिकित्सा के लिए आयुर्वेद का प्रयोग करते हैं । अगर आदिवासियों को समझना है तो हमें उनके बीच में जाना होगा ताकि उनकी मूल समस्यायों को समझा जा सके । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र अशोक कुमार सखवार के द्वारा बताया गया आदिवासी समुदाय यहाँ के मूलनिवासी हैं, इनकों वनवासी, गिरिजन के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन आदिवासी अपने आप को आदिवासी कहलाना ज्यादा उचित मानते हैं । 


ये भारत के निम्नलिखित राज्यों जैसे- मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, राजस्थान, गुजरात और विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में में निवास करते हैं । इनके अपने अनेक उपसमुदाय भी हैं जैसे- गोड, भील, सहरिया, गारो, खासी, नागा, कोरकू आदि । आदिवासी समुदाय प्रत्यक्ष रूप से जल, जंगल, जमीन से जुड़ा है । इनकी अपनी अलग धर्म, संस्कृति है, जिसे अभी तक सहेज कर रखे हुए हैं । भारत में उदारीकरण व भूमंडलीकरण के आगमन के पश्चात गलत सरकारी नीतियों के चलते धीरे-धीरे विकास के नाम पर उनकों जल, जंगल, जमीन से अलग किया जा रहा है । इस कारण उनका विस्थापन हो रहा है और वह मजदूरी करने के लिए मजबूर होते जा रहे हैं । पी-एच.डी. बौद्ध अध्ययन शेषनाथ वर्णवाल ने कहा भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए  पांचवी अनुसूची में विशेष प्रावधान दिया गया है । जिसे सरकार सही तरीके से लागू नहीं कर पा रही है । फिर भी आये दिन विकास के नाम पर उनको विस्थापित किया जा रहा है । उन्होंने बताया हम एक आदर्श समाज की कल्पना करते हैं कि ऐसा समाज हो लेकिन आदिवासी समाज वैसा है । झूठे विकास के नाम पर उनको प्रकृति से अलग नहीं किया जाना चाहिए । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र अनीश कुमार ने कहा आदिवासी यहाँ के मूलनिवासी हैं उनकों समझने की जरुरत है । उन्होंने बताया आदिवासियों के नाम पर बहुत सारा साहित्य और शोध कार्य किया जा रहा है लेकिन उनकी मूल समस्याओं को अभी तक सामने नहीं लाया जा सका है । और उन्होंने बताया गैरआदिवासी लोग भी आदिवासी साहित्य सृजन कर रहे जो कि सहानुभूति परक साहित्य है, जिसे कुछ आदिवासी साहित्यकार आदिवासी साहित्य नहीं मानते हैं । उन्होंने आदिवासी भाषा, संस्कृति व उनकी परम्पराओं का भी एक संक्षिप्त परिचय दिया । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्रा सुनीता गुरुंग ने आदिवासी महिलाओं और लड़कियों के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें गुमराह कर यौन व्यवसाय में धकेल दिया जाता हैं । 


          पी-एच.डी. वैदिक अध्ययन शोधछात्रा चारू सिन्हा ने आदिवासी समुदाय की उन्नत ललित कलाओ की और ध्यान केंद्रित किया । एम.फिल. हिंदी शोधछात्र दिनेश कुमार ने आदिवासी कवितों के उद्धरण देते हुए आदिवासी समुदाय संस्कृति और कला को स्पष्ट किया और कविताओं के माध्यम से उनके ऊपर हो रहे हत्याचार को भी बताया । मुख्य वक्ता हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ जी ने वेदों में वर्णित आर्य-अनार्य को आदिवासियों से जोड़ते हुए बताया । आदिवासी समुदाय प्रकृति से प्रत्यक्ष से जुड़ा हुआ है । उन्होंने बताया आदिवासी समुदाय पहले से ही एक आदर्श समाज हैं । उन्होंने आदिवासी साहित्य लेखन के बारे में बताते हुए कहा आदिवासी और गैरआदिवासी दोनों के साहित्य लेखन को मान्यता दी जानी चाहिए । कौन सा साहित्य आदिवासी समुदाय के लिए अच्छा है, कौन सा नहीं ये निर्णय स्वयं पाठक करेंगे ।
          इस अवसर पर यू. जी. सी. के निर्देशानुसार भारत छोड़ों आन्दोलन के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार, जातिवाद, आतंकवाद भारत छोड़ो का संकल्प उपस्थित सभी सहभागियों द्वारा लिया गया । धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अनीश कुमार द्वारा किया गया ।
                                                                                                                  प्रस्तुति
   अशोक कुमार सखवार

पी-एच.डी. शोधार्थी

Friday, 4 August 2017

हिन्दी विभाग में मनाया गया मैथिलीशरण गुप्त की जयंती


          सांची बौद्ध भारतीय-ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त की जयंती का आयोजन दिनांक 03/08/2017 की सायं 4 बजे किया गया । इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विभाग प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा किया गया । कार्यक्रम के आरंभ में विभाग की पी-एच.डी. शोधार्थी सुनीता गुरुङ ने गुप्त जी के जीवन पर प्रकाश डाला तथा उनकी महिला विषयक लेखन को उद्धृत किया । एम.फिल. शोधार्थी दिनेश अहिरवार ने उनकी रचना यशोधरा को आज के समय से जोड़ते हुए उसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे । पी-एच.डी. अशोक सखवार ने कहा कि गुप्त जी को राष्ट्र कवि का दर्जा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था । आगे कहा कि गुप्त गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होकर स्वाधीनता आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया । उनकी साहित्यिक योगदान को देखते हुए भारत सरकार उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया । विभाग के पी-एच.डी. शोधार्थी अनीश कुमार ने गुप्त के भाषाई दृष्टिकोण को स्पष्ट किए । उन्होने कहा कि गुप्त जी का खड़ी बोली के विकास में अद्वितीय योगदान है, जिसकी उन्हें प्रेरणा महावीर प्रसाद द्विवेदी से मिला । अनीश कुमार ने गुप्त जी की कविता किसान का पाठ किया । मैथिलीशरण गुप्त साहित्य के लगभग सभी विधाओं पर अपनी कलम चलाई है । आगे चलकर भारत सरकार द्वारा उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया । 

पी-एच.डी. शोधार्थी रजत शर्मा ने कहा कि उनकी रचनाओं को अतीत से वर्तमान में जोड़कर देखना चाहिए । इसके बाद विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने अपने आलेख के माध्यम से उनकी विभिन्न पंक्तियों का उल्लेख किये । कहा कि गुप्त जी की रचनाए कालजयी हैं । हमें उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता को समझना होगा । उनकी रचनाएँ छायावाद के पूर्वपीठिका के रूप में दिखाई देती हैं । उन्होने भारतेन्दु युग की परिपाटी को तोड़ते हुए अपने रचनाओं को एक नया कलेवर प्रदान किए । जहां एक तरफ भारतेन्दु जी कहते हैं कि रोवहु आवहु सब मिलि भारत भाई तो गुप्त जी इसके और आगे कहते हैं कि आओ सब मिल  विचारे ये समस्याएँ सभी । इस प्रकार उनकी दूरदृष्टिता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । विभाग द्वारा आयोजित इस तरह का पहला सफल कार्यक्रम था । इस दौरान विभाग के सभी शोधार्थी उपस्थित थे । इस दौरान विभाग में आयोजित की जाने वाली अन्य कार्यक्रमों की भी चर्चा की गई ।  
प्रस्तुति

अनीश कुमार
पी-एच.डी. शोध छात्र

हिन्दी विभाग में मनाया गया हिन्दी दिवस 14 सितंबर 2018

          सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 12 से 14 सितंबर 2018 को हिन्दी दिवस दिवस के रूप में मनाया ग...