सांची
बौद्ध भारतीय-ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी साहित्य के
मूर्धन्य साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त की जयंती का आयोजन दिनांक 03/08/2017 की सायं
4 बजे किया गया । इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विभाग प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा
किया गया । कार्यक्रम के आरंभ में विभाग की पी-एच.डी. शोधार्थी सुनीता गुरुङ ने
गुप्त जी के जीवन पर प्रकाश डाला तथा उनकी महिला विषयक लेखन को उद्धृत किया । एम.फिल.
शोधार्थी दिनेश अहिरवार ने उनकी रचना यशोधरा को आज के समय से जोड़ते हुए उसकी
प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे । पी-एच.डी. अशोक सखवार ने कहा कि गुप्त जी को
राष्ट्र कवि का दर्जा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था । आगे कहा कि गुप्त
गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होकर स्वाधीनता आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया । उनकी
साहित्यिक योगदान को देखते हुए भारत सरकार उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया । विभाग
के पी-एच.डी. शोधार्थी अनीश कुमार ने गुप्त के भाषाई दृष्टिकोण को स्पष्ट किए ।
उन्होने कहा कि गुप्त जी का खड़ी बोली के विकास में अद्वितीय योगदान है, जिसकी उन्हें प्रेरणा महावीर
प्रसाद द्विवेदी से मिला । अनीश कुमार ने गुप्त जी की कविता ‘किसान’ का पाठ किया । मैथिलीशरण गुप्त
साहित्य के लगभग सभी विधाओं पर अपनी कलम चलाई है । आगे चलकर भारत सरकार द्वारा
उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया ।
पी-एच.डी. शोधार्थी रजत शर्मा ने कहा कि उनकी रचनाओं को अतीत से वर्तमान में जोड़कर देखना चाहिए । इसके बाद विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने अपने आलेख के माध्यम से उनकी विभिन्न पंक्तियों का उल्लेख किये । कहा कि गुप्त जी की रचनाए कालजयी हैं । हमें उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता को समझना होगा । उनकी रचनाएँ छायावाद के पूर्वपीठिका के रूप में दिखाई देती हैं । उन्होने भारतेन्दु युग की परिपाटी को तोड़ते हुए अपने रचनाओं को एक नया कलेवर प्रदान किए । जहां एक तरफ भारतेन्दु जी कहते हैं कि ‘रोवहु आवहु सब मिलि भारत भाई’ तो गुप्त जी इसके और आगे कहते हैं कि ‘आओ सब मिल विचारे ये समस्याएँ सभी’ । इस प्रकार उनकी दूरदृष्टिता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । विभाग द्वारा आयोजित इस तरह का पहला सफल कार्यक्रम था । इस दौरान विभाग के सभी शोधार्थी उपस्थित थे । इस दौरान विभाग में आयोजित की जाने वाली अन्य कार्यक्रमों की भी चर्चा की गई ।
पी-एच.डी. शोधार्थी रजत शर्मा ने कहा कि उनकी रचनाओं को अतीत से वर्तमान में जोड़कर देखना चाहिए । इसके बाद विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने अपने आलेख के माध्यम से उनकी विभिन्न पंक्तियों का उल्लेख किये । कहा कि गुप्त जी की रचनाए कालजयी हैं । हमें उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता को समझना होगा । उनकी रचनाएँ छायावाद के पूर्वपीठिका के रूप में दिखाई देती हैं । उन्होने भारतेन्दु युग की परिपाटी को तोड़ते हुए अपने रचनाओं को एक नया कलेवर प्रदान किए । जहां एक तरफ भारतेन्दु जी कहते हैं कि ‘रोवहु आवहु सब मिलि भारत भाई’ तो गुप्त जी इसके और आगे कहते हैं कि ‘आओ सब मिल विचारे ये समस्याएँ सभी’ । इस प्रकार उनकी दूरदृष्टिता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । विभाग द्वारा आयोजित इस तरह का पहला सफल कार्यक्रम था । इस दौरान विभाग के सभी शोधार्थी उपस्थित थे । इस दौरान विभाग में आयोजित की जाने वाली अन्य कार्यक्रमों की भी चर्चा की गई ।
प्रस्तुति
अनीश कुमार
पी-एच.डी. शोध छात्र

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