Wednesday, 9 August 2017

विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विचार संगोष्ठी का आयोजन

      आज दिनांक 09/08/2017 को हिंदी विभाग, साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय बारला, रायसेन में विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विचार संगोष्ठी  का आयोजन किया गया । इसकी अध्यक्षता, हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा की गयी कार्यक्रम का संचालन करते हुए पी-एच.डी शोधछात्र हिंदी अनीश कुमार ने कार्यक्रम की रुपरेखा बताई । सर्वप्रथम पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र रजत शर्मा ने आदिवासी समुदाय के प्रकृति से जुड़े होने की बात कही । वहीं पी-एच.डी. योगा शोधछात्र उमाशंकर कौशिक ने बताया आधिवासी समुदाय प्रकृति से जुड़ा हुआ समाज हैं । वह अपनी चिकित्सा के लिए आयुर्वेद का प्रयोग करते हैं । अगर आदिवासियों को समझना है तो हमें उनके बीच में जाना होगा ताकि उनकी मूल समस्यायों को समझा जा सके । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र अशोक कुमार सखवार के द्वारा बताया गया आदिवासी समुदाय यहाँ के मूलनिवासी हैं, इनकों वनवासी, गिरिजन के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन आदिवासी अपने आप को आदिवासी कहलाना ज्यादा उचित मानते हैं । 


ये भारत के निम्नलिखित राज्यों जैसे- मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, राजस्थान, गुजरात और विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में में निवास करते हैं । इनके अपने अनेक उपसमुदाय भी हैं जैसे- गोड, भील, सहरिया, गारो, खासी, नागा, कोरकू आदि । आदिवासी समुदाय प्रत्यक्ष रूप से जल, जंगल, जमीन से जुड़ा है । इनकी अपनी अलग धर्म, संस्कृति है, जिसे अभी तक सहेज कर रखे हुए हैं । भारत में उदारीकरण व भूमंडलीकरण के आगमन के पश्चात गलत सरकारी नीतियों के चलते धीरे-धीरे विकास के नाम पर उनकों जल, जंगल, जमीन से अलग किया जा रहा है । इस कारण उनका विस्थापन हो रहा है और वह मजदूरी करने के लिए मजबूर होते जा रहे हैं । पी-एच.डी. बौद्ध अध्ययन शेषनाथ वर्णवाल ने कहा भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए  पांचवी अनुसूची में विशेष प्रावधान दिया गया है । जिसे सरकार सही तरीके से लागू नहीं कर पा रही है । फिर भी आये दिन विकास के नाम पर उनको विस्थापित किया जा रहा है । उन्होंने बताया हम एक आदर्श समाज की कल्पना करते हैं कि ऐसा समाज हो लेकिन आदिवासी समाज वैसा है । झूठे विकास के नाम पर उनको प्रकृति से अलग नहीं किया जाना चाहिए । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र अनीश कुमार ने कहा आदिवासी यहाँ के मूलनिवासी हैं उनकों समझने की जरुरत है । उन्होंने बताया आदिवासियों के नाम पर बहुत सारा साहित्य और शोध कार्य किया जा रहा है लेकिन उनकी मूल समस्याओं को अभी तक सामने नहीं लाया जा सका है । और उन्होंने बताया गैरआदिवासी लोग भी आदिवासी साहित्य सृजन कर रहे जो कि सहानुभूति परक साहित्य है, जिसे कुछ आदिवासी साहित्यकार आदिवासी साहित्य नहीं मानते हैं । उन्होंने आदिवासी भाषा, संस्कृति व उनकी परम्पराओं का भी एक संक्षिप्त परिचय दिया । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्रा सुनीता गुरुंग ने आदिवासी महिलाओं और लड़कियों के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें गुमराह कर यौन व्यवसाय में धकेल दिया जाता हैं । 


          पी-एच.डी. वैदिक अध्ययन शोधछात्रा चारू सिन्हा ने आदिवासी समुदाय की उन्नत ललित कलाओ की और ध्यान केंद्रित किया । एम.फिल. हिंदी शोधछात्र दिनेश कुमार ने आदिवासी कवितों के उद्धरण देते हुए आदिवासी समुदाय संस्कृति और कला को स्पष्ट किया और कविताओं के माध्यम से उनके ऊपर हो रहे हत्याचार को भी बताया । मुख्य वक्ता हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ जी ने वेदों में वर्णित आर्य-अनार्य को आदिवासियों से जोड़ते हुए बताया । आदिवासी समुदाय प्रकृति से प्रत्यक्ष से जुड़ा हुआ है । उन्होंने बताया आदिवासी समुदाय पहले से ही एक आदर्श समाज हैं । उन्होंने आदिवासी साहित्य लेखन के बारे में बताते हुए कहा आदिवासी और गैरआदिवासी दोनों के साहित्य लेखन को मान्यता दी जानी चाहिए । कौन सा साहित्य आदिवासी समुदाय के लिए अच्छा है, कौन सा नहीं ये निर्णय स्वयं पाठक करेंगे ।
          इस अवसर पर यू. जी. सी. के निर्देशानुसार भारत छोड़ों आन्दोलन के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार, जातिवाद, आतंकवाद भारत छोड़ो का संकल्प उपस्थित सभी सहभागियों द्वारा लिया गया । धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अनीश कुमार द्वारा किया गया ।
                                                                                                                  प्रस्तुति
   अशोक कुमार सखवार

पी-एच.डी. शोधार्थी

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