Thursday, 2 November 2017

अशोक वाजपेयी की कविता : तृतीय मासिक परिचर्चा

            सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 31 अक्तूबर 2017 को तृतीय मासिक परिचर्चा का आयोजन किया गया । इसका विषय अशोक वाजपेयी की कविता रखा गया था । मुख्यतः अशोक वाजपेयी के कविता संग्रह कहीं कोई दरवाजा पर बातचीत की गई । परिचर्चा में विभाग के अलावा अन्य विभागों के भी छात्र/छात्राएं व शोधार्थियों ने भाग लिया । इसमें समकालीन कविता के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक व वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा की गई । इसमें एम.फिल हिन्दी के शोधार्थी अनिल कुमार अहिरवार ने अपना सारगर्भित किन्तु संक्षिप्त शोध-आलेख का वाचन किया । वहीं पीएचडी शोधार्थी अशोक कुमार सखवार ने उनकी कविताओं को आधुनिक संदर्भों से जोड़ते हुए उसकी प्रासंगिकता पर चर्चा की । 

पीएचडी शोध छात्रा सुनीता गुरुङ ने उनकी कविताओं में परंपरा व स्त्री चेतना के संदर्भों को उल्लेखित किया । एम.फिल शोधार्थी दिनेश कुमार अहिरवार ने सम्पूर्ण कविता संग्रह पर अपना एक शोध आलेख प्रस्तुत किया । जिसमें वह सभी पक्षों को व्याख्यायित किया । हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने कविताओं की व्याख्या करते हुए उन्हें व्याख्यायित किया । इस संग्रह मे अशोक वाजपेयी जी की विभिन्न दृष्टियाँ उद्घाटित हैं । यह कविता संग्रह नाउम्मीद में उम्मीद की एक रोशनी है । अंधेरे में उसे चीरते हुए स्वच्छ उजाले की उम्मीद है । पीएचडी शोधार्थी अनीश कुमार ने कहा कि इन्हें वैभव, ऐश्वर्य, आभिजात्य, देह और पार्थिकता का कवि कहा जाता है । इस कविता संग्रह में शब्द, कविता, संबंध, प्रकृति, प्रेम और धरती के अस्तित्व की बात की गई है । वाजपेयी जी प्रेम को एकाकार करने वाले कवि हैं । इनका समकालीन कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है । यह कवितायें सभी अस्थिरताओं के बीच शांत या सुस्थिरता को पाना चाहती हैं । इनका महत्वपूर्ण चिंतन मृत्युबोध को भी लेकर भी है । परिचर्चा का संचालन अनीश कुमार ने किया ।  
रिपोर्टिंग व प्रस्तुति
अनीश कुमार

पी-एच.डी. शोध छात्र

Monday, 23 October 2017

भित्ति पत्रिका 'पारमिता' का पहला अंक - सं. अनीश कुमार


               सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, बरला, रायसेन, मध्य प्रदेश के हिन्दी विभाग द्वारा मासिक भित्ति (दीवार) पत्रिका का सम्पादन किया जाता है । इसके पहले अंक का सम्पादन हिन्दी विभाग के पी-एच.डी. शोधार्थी अनीश कुमार के द्वारा किया गया । इसका लोकार्पण हिन्दी दिवस 14 सितंबर 2017 को सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री नवल शुक्ल द्वारा किया गया था । अब ये पत्रिका ब्लाग पर पढ़ी जा सकती है । सम्मानित पाठकों के सुझाव व प्रतिक्रियायें आमंत्रित हैं । - संपादक
































प्रस्तुति 
अनीश कुमार 
पी-एच.डी. शोधार्थी, हिन्दी 

Monday, 2 October 2017

हिन्दी साहित्य में थर्ड जेंडर – मासिक परिचर्चा

            सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 29 सितंबर 2017 को द्वितीय मासिक परिचर्चा का आयोजन किया गया । इसका विषय हिन्दी साहित्य में थर्ड जेंडर रखा गया था । परिचर्चा में विभाग के अलावा अन्य विभागों के भी छात्र/छात्राएं व शोधार्थी भी भाग लेते हैं । कार्यक्रम में किन्नरों के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक व वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा कि गई । इसमें एम.फिल हिन्दी के शोधार्थी कपिल कुमार गौतम ने अपना सारगर्भित शोध-आलेख का वाचन किया । उन्होने ने किन्नरों के इतिहास को संदर्भित करते हुये उनके मिथकीय प्रयोगों को विवेचित किया । गौरतलब है कि किन्नरों का इतिहास बहुत पुराना है । महाभारत, रामायण, उपनिषदों में भी इनकी गाथाएँ देखने व सुनने को मिलती हैं । ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, हिंदू और मुसलिम शासकों द्वारा किन्नरों का इस्तेमाल खासतौर पर अंत:पुर ओर हरम में रानियों की पहरेदारी के लिए किया जाता था। इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि रानियां पहरेदारों से अवैध संबंध स्थापित नहीं कर पाएं । उस दौर में राजाओं द्वारा काफी नौजवानों के यौनांग काटकर उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था । दिल्ली की सल्तनत के दौरान किन्नर महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं । 
          अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में किन्नर वरिष्ठ सैनिक अधिकारी रहे हैं । खिलजी का एक प्रमुख पदाधिकारी मलिक गफूर था, जो किन्नर था । वह खिलजी का दायां हाथ माना जाता था । उसी के प्रयासों से खिलजी ने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया । सामाजिक संदर्भ में इन्हें बहिष्कृत कर दिया गया है । अनीश कुमार ने कहा कि हमें उनके प्रति सोच बदलने कि आवश्यकता है । जब हम किसी को प्रकृति प्रदत्त लिंग के आधार पर भेदभाव करते हैं तो निश्चय ही हम उनके मनवाधिकारों का हनन कर रहे होते हैं । किन्नरों को लेकर भारतीय समाज में भिन्न-भिन्न तरह की भ्रांतियां हैं । मिथक और इतिहास में भी इनकी खास तरह की उपस्थिति है । महाभारत का शिखंडी योद्धा था । जिसकी मदद से अर्जुन ने भीष्म पितामह का वध किया था । वह आधा औरत और आधा मर्द यानि किन्नर था । अर्जुन ने अपने अज्ञातवास का एक साल का समय भी किन्नर का रूप धारण कर वृहन्नला के नाम से बिताया था । कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में किन्नरों का उल्लेख किया है । उस समय राजाओं ने किन्नरों का अपने निजी सुरक्षाकर्मी के तौर पर तैनात किया हुआ था तथा उनका इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जाता था । इस अवसर पर विभाग के पीएचडी शोधार्थी अनीश कुमार, एम.फिल. शोधार्थी दिनेश अहिरवार व अनिल अहिरवार सहित कई छात्र/छात्राएं उपस्थित थे ।
प्रस्तुति
अनीश कुमार
                                                                                                                                                पीएचडी शोध छात्र

Wednesday, 20 September 2017

चेतना का स्तर स्वभाषा से ही बेहतर होगा : श्री नवल शुक्ल

भित्ति पत्रिका व ब्लाग का लोकार्पण
          हिन्दी दिवस पर मुख्य अतिथि द्वारा हिन्दी विभाग की मासिक भित्ति पत्रिका ‘पारमिता’ व ब्लाग (subishindi.blogspot.in) का भी लोकार्पण किया गया । इस अवसर पर मुख्य अतिथि व साहित्यकार नवल शुक्ल ने कहा कि जिस भाषा में चिंतन, मनन, सोच और व्यवहार हो, वही भाषा है । भाषा मनुष्य के भावों को व्यक्त करने के लिए व्यक्ति का पहली औज़ार थी । कहा कि चेतना का स्तर स्वभाषा से ही बेहतर होगा । सह प्राध्यापक डॉ. नवीन मेहता ने कहा कि लोगों को चाहिए कि वो भाषा को सीखें, समझे और भाषा के साथ स्वयं को भी उन्नत करें । लोकार्पण के बाद उन्होंने प्रतिक्रिया वाले पन्ने पर विभाग व संपादक को अपनी शुभकामनायें दी । बता दें कि पहले अंक का सम्पादन हिन्दी विभाग के पी-एच.डी. शोधार्थी अनीश कुमार ने किया है ।  

 


हिन्दी दिवस पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन
           साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, बारला, रायसेन, मध्य प्रदेश के हिंदी विभाग द्वारा तीन दिवसीय (12 से 14 सितंबर 2017 तक) हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया । इस अवसर पर निम्न प्रतियोगिताएँ आयोजित की गयी निबंध प्रतियोगिता, पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, स्वरचित कविता पाठ प्रतियोगिता का भी आयोजन हुआ । पहले दिन दो प्रतियोगिताएँ निबंध प्रतियोगिता और पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता आयोजित की गयी । निबंध प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। निबंध लेखन हेतु दो शीर्षक ‘सोशल मीडिया और हिन्दी’ और ‘जल और जीवन’ निर्धारित किए गए थे । पोस्टर प्रतियोगिता का विषय हिंदी से संबंधित स्लोगन, लेखक छायाचित्र आदि निर्धारित किया गया था । सभी प्रतियोगिताओं के लिए अधिकतम 10 अंक निर्धारित किया गया था । प्रतियोगिता के बाद परिसर में सभी पोस्टरों की प्रदर्शिनी लगाई गई । 
         दूसरे दिन भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । इसकी समय सीमा 5 मिनट रखी गई थी । इसका विषय “हिन्दी और राष्ट्र” था । सभी ने पूरे उत्साह के साथ भाषण दिये । तीसरे दिन स्वरचित कवितापाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । सभी प्रतियोगिताओं के परिणाम की घोषणा समारोह के अंतिम दिन 14 सितंबर 2017 को की गयी। निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान योग विभाग के शोधार्थी उमाशंकर कौशिक, द्वितीय स्थान बौद्ध विभाग के एम.ए. के छात्रा सोनाली बारमाटे और तृतीय स्थान संस्कृत विभाग के एम.ए. के छात्र गौतम आर्य को मिला । पोस्टर प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार भारत जैन, द्वितीय पुरस्कार प्रतीक सागर, तृतीय पुरस्कार तिलक गायन को मिला । 
        भाषण प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार गौतम आर्य, द्वितीय पुरस्कार शुभम महेश गजभिए व तृतीय पुरस्कार अशोक कुमार सखवार को मिला । कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार स्नेहलता मिश्रा, द्वितीय पुरस्कार भारत जैन व तृतीय पुरस्कार सुनीता गुरुङ को मिला । सभी विजेताओं को मुख्य अतिथि श्री नवल मिश्र, डॉ. शुक्ला मुखर्जी, डॉ. नवीन मेहता और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा पुरस्कार वितरण किया गया। पुरस्कार के रूप में सभी को प्रमाण पत्र और हिन्दी की पुस्तकें दिये गये । कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शोधार्थियों, विद्यार्थियों समेत बड़ी संख्या में प्राध्यापक व कर्मचारी उपस्थित थे । मुख्य कार्यक्रम का संचालन विभाग प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ व पी-एच.डी. शोधार्थी अनीश कुमार ने किया । धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नवीन मेहता ने किया ।
प्रस्तुति 
अशोक कुमार सखवार
पी-एच.डी. शोधार्थी

Friday, 15 September 2017

खड़ी बोली का उद्भव और विकास – मासिक परिचर्चा


          हिन्दी विभाग द्वारा अपने मासिक परिचर्चा के अंतर्गत आज दिनांक 31 अगस्त 2017 को पहली खुली परिचर्चा आयोजित की गई । इसका मुख्य विषय “खड़ी बोली का उद्भव और विकास” था । विषय के आधार पर उसकी उत्पत्ति व विकास के चरण, भाषिक योगदान तथा उसके वर्तमान स्वरूप पर बातचीत की गई । इसमें विभाग के शोधार्थी के अलावा विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के भी शोधार्थी व विद्यार्थी शामिल हुए । परिचर्चा पूरी तरह से खुली रखी गई थी, इसमें किसी कोई कोई समय का बंधन नहीं था । परिचर्चा के बाद सवाल जबाब का सत्र रखा गया जिसमें कई प्रश्न उभरकर सामने आए । सर्वप्रथम विभाग के एम.फिल. शोधार्थी कपिल कुमार गौतम ने अपने सारगर्भित शोध आलेख के माध्यम से विषय के सम्पूर्ण क्षेत्र को व्याख्यायित किये । कपिल ने सवाल रखा कि जिस समय खड़ी बोली अपने विकास के अवस्था में थी उस समय ब्रज व अवधि का सम्पूर्ण काव्य क्षेत्र पर अधिकार था । आखिर ऐसा क्या कारण था कि खड़ी बोली को ही राजभाषा व मातृभाषा के रूप में दर्जा दिया गया । खड़ी बोली के प्रारम्भिक चरण क्या थे । 


पीएचडी शोधार्थी रजत शर्मा ने भी अपने आलेख का वाचन किए । उन्होंने बताया कि जिस प्रकार पश्चिमी देशों में एक व्यवस्था के तहत सभी कार्य संपादित किए जाते हैं, उसी तरह के व्यवस्था परिवर्तन के गुण खड़ी बोली में भी मिलते हैं । इसी तरह सुनीता गुरुङ, दिनेश अहिरवार, शेषनाथ वर्णवाल ने अपने विचार रखे । पीएचडी शोधार्थी अशोक सखवार ने कहा कि खड़ी बोली एक सहज व सामान्य जनमानस की भाषा है तथा खड़ी बोली आज एक सम्मृद्ध व वैज्ञानिक भाषा है । इसे इसी रूप में स्वीकार करना चाहिए । अंत में विभाग के अध्यक्ष डॉ.  राहुल सिद्धार्थ ने कहा कि पंत द्वारा लिखित पल्लव की भूमिका का खड़ी बोली के योगदान में काफी योगदान है । इसे उसका घोषणा पत्र भी कहा जाता है । उन्होंने पल्लव से कुछ पक्तियों के माध्यम से खड़ी बोली के विकास यात्रा को समझाने कि कोशिश की । संविधान के अनुसूचियों को समझाया । कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन पीएचडी शोधार्थी अनीश कुमार ने किया ।
प्रस्तुति
अनीश कुमार
पीएचडी शोधार्थी, हिन्दी

Wednesday, 30 August 2017

हलाला प्रथा पर जनसत्ता के रविवारी में प्रकाशित शोध आलेख

27 अगस्त 2017 के अंक में 


कपिल कुमार गौतम को मिला तृतीय स्थान



            सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, बारला, रायसेन के खेल विभाग द्वारा हाकी के महानतम जादूगर मेजर ध्यानचन्द्र की जन्मशती (राष्ट्रीय खेल दिवस, 29 अगस्त 2017) के अवसर पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । जिसका थीम युवा और वर्तमान खेल परिदृश्य था । इसमें विश्वविद्यालय के कुल 11 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया । कार्यक्रम के अंत में परिणाम की घोषणा की गई जिसमें हिन्दी विभाग के एम.फिल. शोधार्थी कपिल कुमार गौतम को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ । इस उपलब्धि पर उन्हें हिन्दी विभाग प्रभारी व समस्त विद्यार्थी/शोधार्थी द्वारा बधाई दिया गया । हिन्दी विभाग प्रभारी ने उन्हें भविष्य में ऐसे ही बढ़ते रहने की कामना करते हुए उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनायें दी । 

प्रस्तुति 
अनीश कुमार
पी-एच.डी. शोधार्थी 

Wednesday, 9 August 2017

विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विचार संगोष्ठी का आयोजन

      आज दिनांक 09/08/2017 को हिंदी विभाग, साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय बारला, रायसेन में विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विचार संगोष्ठी  का आयोजन किया गया । इसकी अध्यक्षता, हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा की गयी कार्यक्रम का संचालन करते हुए पी-एच.डी शोधछात्र हिंदी अनीश कुमार ने कार्यक्रम की रुपरेखा बताई । सर्वप्रथम पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र रजत शर्मा ने आदिवासी समुदाय के प्रकृति से जुड़े होने की बात कही । वहीं पी-एच.डी. योगा शोधछात्र उमाशंकर कौशिक ने बताया आधिवासी समुदाय प्रकृति से जुड़ा हुआ समाज हैं । वह अपनी चिकित्सा के लिए आयुर्वेद का प्रयोग करते हैं । अगर आदिवासियों को समझना है तो हमें उनके बीच में जाना होगा ताकि उनकी मूल समस्यायों को समझा जा सके । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र अशोक कुमार सखवार के द्वारा बताया गया आदिवासी समुदाय यहाँ के मूलनिवासी हैं, इनकों वनवासी, गिरिजन के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन आदिवासी अपने आप को आदिवासी कहलाना ज्यादा उचित मानते हैं । 


ये भारत के निम्नलिखित राज्यों जैसे- मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, राजस्थान, गुजरात और विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में में निवास करते हैं । इनके अपने अनेक उपसमुदाय भी हैं जैसे- गोड, भील, सहरिया, गारो, खासी, नागा, कोरकू आदि । आदिवासी समुदाय प्रत्यक्ष रूप से जल, जंगल, जमीन से जुड़ा है । इनकी अपनी अलग धर्म, संस्कृति है, जिसे अभी तक सहेज कर रखे हुए हैं । भारत में उदारीकरण व भूमंडलीकरण के आगमन के पश्चात गलत सरकारी नीतियों के चलते धीरे-धीरे विकास के नाम पर उनकों जल, जंगल, जमीन से अलग किया जा रहा है । इस कारण उनका विस्थापन हो रहा है और वह मजदूरी करने के लिए मजबूर होते जा रहे हैं । पी-एच.डी. बौद्ध अध्ययन शेषनाथ वर्णवाल ने कहा भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए  पांचवी अनुसूची में विशेष प्रावधान दिया गया है । जिसे सरकार सही तरीके से लागू नहीं कर पा रही है । फिर भी आये दिन विकास के नाम पर उनको विस्थापित किया जा रहा है । उन्होंने बताया हम एक आदर्श समाज की कल्पना करते हैं कि ऐसा समाज हो लेकिन आदिवासी समाज वैसा है । झूठे विकास के नाम पर उनको प्रकृति से अलग नहीं किया जाना चाहिए । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्र अनीश कुमार ने कहा आदिवासी यहाँ के मूलनिवासी हैं उनकों समझने की जरुरत है । उन्होंने बताया आदिवासियों के नाम पर बहुत सारा साहित्य और शोध कार्य किया जा रहा है लेकिन उनकी मूल समस्याओं को अभी तक सामने नहीं लाया जा सका है । और उन्होंने बताया गैरआदिवासी लोग भी आदिवासी साहित्य सृजन कर रहे जो कि सहानुभूति परक साहित्य है, जिसे कुछ आदिवासी साहित्यकार आदिवासी साहित्य नहीं मानते हैं । उन्होंने आदिवासी भाषा, संस्कृति व उनकी परम्पराओं का भी एक संक्षिप्त परिचय दिया । पी-एच.डी. हिंदी शोधछात्रा सुनीता गुरुंग ने आदिवासी महिलाओं और लड़कियों के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें गुमराह कर यौन व्यवसाय में धकेल दिया जाता हैं । 


          पी-एच.डी. वैदिक अध्ययन शोधछात्रा चारू सिन्हा ने आदिवासी समुदाय की उन्नत ललित कलाओ की और ध्यान केंद्रित किया । एम.फिल. हिंदी शोधछात्र दिनेश कुमार ने आदिवासी कवितों के उद्धरण देते हुए आदिवासी समुदाय संस्कृति और कला को स्पष्ट किया और कविताओं के माध्यम से उनके ऊपर हो रहे हत्याचार को भी बताया । मुख्य वक्ता हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ. राहुल सिद्धार्थ जी ने वेदों में वर्णित आर्य-अनार्य को आदिवासियों से जोड़ते हुए बताया । आदिवासी समुदाय प्रकृति से प्रत्यक्ष से जुड़ा हुआ है । उन्होंने बताया आदिवासी समुदाय पहले से ही एक आदर्श समाज हैं । उन्होंने आदिवासी साहित्य लेखन के बारे में बताते हुए कहा आदिवासी और गैरआदिवासी दोनों के साहित्य लेखन को मान्यता दी जानी चाहिए । कौन सा साहित्य आदिवासी समुदाय के लिए अच्छा है, कौन सा नहीं ये निर्णय स्वयं पाठक करेंगे ।
          इस अवसर पर यू. जी. सी. के निर्देशानुसार भारत छोड़ों आन्दोलन के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार, जातिवाद, आतंकवाद भारत छोड़ो का संकल्प उपस्थित सभी सहभागियों द्वारा लिया गया । धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अनीश कुमार द्वारा किया गया ।
                                                                                                                  प्रस्तुति
   अशोक कुमार सखवार

पी-एच.डी. शोधार्थी

Friday, 4 August 2017

हिन्दी विभाग में मनाया गया मैथिलीशरण गुप्त की जयंती


          सांची बौद्ध भारतीय-ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त की जयंती का आयोजन दिनांक 03/08/2017 की सायं 4 बजे किया गया । इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विभाग प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ द्वारा किया गया । कार्यक्रम के आरंभ में विभाग की पी-एच.डी. शोधार्थी सुनीता गुरुङ ने गुप्त जी के जीवन पर प्रकाश डाला तथा उनकी महिला विषयक लेखन को उद्धृत किया । एम.फिल. शोधार्थी दिनेश अहिरवार ने उनकी रचना यशोधरा को आज के समय से जोड़ते हुए उसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे । पी-एच.डी. अशोक सखवार ने कहा कि गुप्त जी को राष्ट्र कवि का दर्जा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था । आगे कहा कि गुप्त गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होकर स्वाधीनता आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया । उनकी साहित्यिक योगदान को देखते हुए भारत सरकार उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया । विभाग के पी-एच.डी. शोधार्थी अनीश कुमार ने गुप्त के भाषाई दृष्टिकोण को स्पष्ट किए । उन्होने कहा कि गुप्त जी का खड़ी बोली के विकास में अद्वितीय योगदान है, जिसकी उन्हें प्रेरणा महावीर प्रसाद द्विवेदी से मिला । अनीश कुमार ने गुप्त जी की कविता किसान का पाठ किया । मैथिलीशरण गुप्त साहित्य के लगभग सभी विधाओं पर अपनी कलम चलाई है । आगे चलकर भारत सरकार द्वारा उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया । 

पी-एच.डी. शोधार्थी रजत शर्मा ने कहा कि उनकी रचनाओं को अतीत से वर्तमान में जोड़कर देखना चाहिए । इसके बाद विभाग के प्रभारी डॉ. राहुल सिद्धार्थ ने अपने आलेख के माध्यम से उनकी विभिन्न पंक्तियों का उल्लेख किये । कहा कि गुप्त जी की रचनाए कालजयी हैं । हमें उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता को समझना होगा । उनकी रचनाएँ छायावाद के पूर्वपीठिका के रूप में दिखाई देती हैं । उन्होने भारतेन्दु युग की परिपाटी को तोड़ते हुए अपने रचनाओं को एक नया कलेवर प्रदान किए । जहां एक तरफ भारतेन्दु जी कहते हैं कि रोवहु आवहु सब मिलि भारत भाई तो गुप्त जी इसके और आगे कहते हैं कि आओ सब मिल  विचारे ये समस्याएँ सभी । इस प्रकार उनकी दूरदृष्टिता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । विभाग द्वारा आयोजित इस तरह का पहला सफल कार्यक्रम था । इस दौरान विभाग के सभी शोधार्थी उपस्थित थे । इस दौरान विभाग में आयोजित की जाने वाली अन्य कार्यक्रमों की भी चर्चा की गई ।  
प्रस्तुति

अनीश कुमार
पी-एच.डी. शोध छात्र

Wednesday, 19 July 2017

विभिन्न हिन्दी शब्दकोश

1. अवधी शब्दकोश – सूर्यप्रकाश दीक्षित व सजीवनलाल यादव, विश्वविद्यालय प्रकाशन, लखनऊ, 1996
2. वाचिक कविता: अवधी – विद्यानिवास मिश्र, भारतीय ज्ञानपीठ, 2005
3. अवधी लोक कथाएँ – जगदीश पीयूष, लोकभारती प्रकाशन, 2004
4. प्रारंभिक अवधी – विश्वनाथ त्रिपाठी, राधाकृष्ण प्रकाशन, 1975
5. अवधी का विकास – बाबूराम सक्सेना, हिन्दूस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, 1972
6. अवधी बृहत लोकोक्ति कोश – कमला शुक्ल, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, 2002
7. अवधी लोकगीत: समीक्षात्मक अध्ययन – विद्याविंदू सिंह, परिमल प्रकाशन, 1983
8. अवधी लोकगीत और परम्परा – इन्दूप्रकाश पाण्डेय, प्रवीण प्रकाशन, दिल्ली, 1988
9. लोकगीतों में राम-कथा : अवधी – किरण मराली, साहित्य भवन, इलाहाबाद 1986
10. अवधी का विकास – बाबूरामसक्सेना, हिन्दूस्तानीअकादमी, इलाहाबाद, 1972
11. Evolution of Awadhi- Baburam Saksena, Motilal Banarsidas Publishers, 1971
12. अवधीकोश – रामज्ञद्विवेदी, हिन्दूस्तानीअकादमी, इलाहाबाद, 1955
13. पूर्वी अवधी: ग्राम्यशब्दावली – आत्मारामत्रिपाठी, आलोकप्रकाशन, इलाहाबाद, 2007
14. अवधी शब्द संपदा – हरदेवबाहरी, भारतीप्रेस, इलाहाबाद, 1982

Tuesday, 18 July 2017

हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
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•         ऑनलाइन वित्त‍ पत्रिकाएं
•         इन्हे भी देखें
•         संदर्भ
•         बाहरी कड़ियाँ
·         इतिहास
            हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा। भारतीयों के सामाजिकधार्मिकराजनैतिकआर्थिक हितों का समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राय ने कई पत्र शुरू किये। जिसमें अहम हैं-साल 1816 में प्रकाशित ‘बंगाल गजट। बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है। इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे। इसके अलावा राजा राममोहन राय ने मिरातुलसंवाद कौमुदीबंगाल हैराल्ड पत्र भी निकाले और लोगों में चेतना फैलाई। 30 मई 1826 को कलकत्ता से पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकलने वाले ‘उदंत्त मार्तण्ड’ को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है।[1]
इस समय इन गतिविधियों का चूँकि कलकत्ता केन्‍द्र था इसलिए यहाँ पर सबसे महत्‍वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएँ - उद्‌दंड मार्तंडबंगदूतप्रजामित्र मार्तंड तथा समाचार सुधा वर्षण आदि का प्रकाशन हुआ। प्रारम्‍भ के पाँचों साप्‍ताहिक पत्र थे एवं सुधा वर्षण दैनिक पत्र था। इनका प्रकाशन दो-तीन भाषाओं के माध्‍यम से होता था। ‘सुधाकरऔर ‘बनारस अखबारसाप्‍ताहिक पत्र थे जो काशी से प्रकाशित होते थे। ‘प्रजाहितैषीएवं बुद्धि प्रकाश का प्रकाशन आगरा से होता था। ‘तत्‍वबोधिनीपत्रिका साप्‍ताहिक थी और इसका प्रकाशन बरेली से होता था। ‘मालवासाप्‍ताहिक मालवा से एवं ‘वृतान्‍तजम्‍मू से तथा ‘ज्ञान प्रदायिनी पत्रिकालाहौर से प्रकाशित होते थे। दोनों मासिक पत्र थे। इन पत्र-पत्रिकाओं का प्रमुख उद्‌देश्‍य एवं सन्‍देश जनता में सुधार व जागरण की पवित्र भावनाओं को उत्‍पन्‍न कर अन्‍याय एवं अत्‍याचार का प्रतिरोध/विरोध करना था। हालाँकि इनमें प्रयुक्‍त भाषा (हिन्‍दी) बहुत ही साधारण किस्‍म की (टूटी-फूटी हिन्‍दी) हुआ करती थी। सन्‌ 1868 ई. में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्‍यिक पत्रिका कवि वचन सुधा का प्रवर्तन किया। और यहीं से हिन्दी पत्रिकाओं के प्रकाशन में तीव्रता आई।[2]
यहाँ प्रस्तुत है वर्तमान में भारत और विदेशों से प्रकाशित होने वाली महत्वपूर्ण पत्रिकाओं की सूची :
ऑनलाइन साहित्यिक पत्रिकाएं
हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएँ हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास और संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभाती रहीं हैं। कविताकहानीउपन्यासनिबंधनाटकआलोचनायात्रावृत्तांतजीवनी,आत्मकथा तथा शोध से संबंधित आलेखों का नियमित तौर पर प्रकाशन इनका मूल उद्देश्य है। आधुनिक हिन्दी में जितने महत्वपूर्ण आंदोलन छिड़ेपत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से छिड़े। न जाने कितने महत्वपूणर्ण साहित्यकार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्रतिष्ठित हुए। न जाने कितनी श्रेष्ठ रचनाएँ पाठकों के सामने पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आईं। भारतेंदु युग के साहित्यकारों की केन्द्रीय पत्रिकाएँ थीं – ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’, ‘ब्राह्मण’ या ‘हिंदोस्तान। द्विवेदी युग और स्वयं आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘सरस्वती’ उन दिनों की सर्वाधिक प्रतिनिधि पत्रिका थी। मैथिलीशरण गुप्त ‘सरस्वती’ की ही देन हैं। छायावादी कवियों के साथ ‘मतवाला’, ‘इंदु’, ‘रूपाभ’, ‘श्री शारदा’ जैसी पत्रिकाओं के नाम जुड़े हैं। माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्य तो ‘कर्मवीर’ को जाने बिना जानी ही नहीं जा सकता। हिन्दी का प्रगतिशील साहित्य ‘हंस’ के पंखों पर चढ़कर नहीं आया। नई कविता की जन्मकुंडली ‘नए पत्ते’, ‘नई कविता’ जैसी पत्रिकाओं ने तैयार की।-- "वेब पत्रिका सृजनगाथा में डॉ. हरिसिंह गौर"
पत्रिका का नाम
संपादकीय संपर्क
वेब संपर्क
ई-मेल संपर्क
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन एक्‍सटेंशन-2,गाजियाबाद-201005
210, झेलम हॉस्टलजवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालयनई दिल्ली-110067
6, द्वारिका सदनप्रेस कॉम्‍प्‍लेक्‍सएम0पीनगरभोपाल-462011
ओशो इंटरनैशनल, 304, पार्क एवन्यू साउथस्वीट 608, न्यूयॉर्कऐन वाई 100010,
osho-int@osho.com
'स्‍वप्निका', डी-107, महानगर विस्‍तारलखनऊ-226006,
kathakrama@gmail.com
ए-10 बसेराऑफ दिन-क्वारी रोडदेवनार,मुंबई - 400088
18-20, कस्‍तूरबा गांधी मार्गनई दिल्‍ली-110001
18/271, इंदिरा नगरलखनऊ-226016
भारतीय विद्या भवन, 20, मुंशी रोडमुम्बई-400007,
navneet.hindi@gmail.com
403, कृष्णा आंगनआर.एन.पी. पार्कभाईंदर (पूर्व) मुंबई-401105
बी-107, सेक्टर-63, नोएडागौतमबुद्ध नगर-201303, उ.प्र.,
pakhi@pakhi.in
प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशनचैशायर होम रोडबरियाटु,रांची834003, झारखंड,
rangvarta@gmail.com
विजय राय, 3/343, विवेक खण्‍डगोमती नगरलखनऊ-226010 उ.प्र.,
vijairai.lamahi@gmail.com
भारतीय भाषा परिषद, 36 शेक्‍सपियर सरणीकोलकाता-700017
2/36, अंसारी रोडदरियागंजनई दिल्ली-110002,
info@hansmonthly.in
होटल नीलकंठआजमगढ़ उप्र
contact2editor@gmail.com

ऑफलाइन साहित्यिक पत्रिकाएं
ई-मेल संपर्क
अंतिका प्रकाशनसी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन एक्‍सटेंशन-2, गाजियाबाद-201005
प्रकाशन विभागसीजीओ कॉम्‍लेक्‍सलोधी रोडनई दिल्‍ली-110003
सहयात्रा प्रकाशन प्रा. लि.सी-52, जेड-3, दिलशाद गार्डेनदिल्‍ली-110095
संपादक : हेमंत शेष, 40/158, मानसरोवरजयपुर-३०२०२० प्रकाशक :पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्रउदयपुर
hemantshesh@rediffmail.com
के। 30/37, अरविंद कुटीरनिकट भैरवनाथवाराणसी-221001, उत्तर प्रदेश
कृषि एवं ग्रामीण रोजगार मंत्रालयकृषि भवननई दिल्‍ली-110001
भारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्‍टीट्यूशनल एरियालोदी रोडपोस्‍ट बॉक्‍स-3113, नई दिल्‍ली-110003
jananpith@satyam.net.in
101, रामनगरआधारतालजबलपुर-4 (oप्रo)
एस एस -107, परिकल्पनासेक्टर-N-1, संगम होटल के पीछे,लखनऊ-226024(उ.प्र.)
parikalpana.samay@gmail.com
बी-1/84, सेक्‍टर-बीअलीगंजलखनऊ-226024
केन्‍द्रीय हिन्‍दी निदेशालयपश्चिमी खण्‍ड-7, रामकृष्‍ण पुरम,नई दिल्‍ली
राजस्‍थान साहित्‍य अकादमीसेक्‍टर-4, हिरण मगरीउदयपुर-313002,
sahityaacademy@yahoo.in
संस्‍कृति भवनराजेन्‍द्र नगरलखनऊ-226004
यतेन्‍द्र सागरप्रथम तल, 1-2, मुकुंद नगरहापुड़ रोडगाजियाबाद-201001
सचिवसाहित्‍य अकादेमीरवीन्‍द्र भवन, 35, फिरोजशाह मार्गनई दिल्‍ली-110001
विनीत प्‍लाज़ाफ्लैट नं0 01, विनीत खण्‍ड-6, गोमती नगरलखनऊ-226010,
डॉ. दुर्गाबाई देशमुख समाज कल्याण भवनबी-12, कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरियानई दिल्ली-110603
संपादक: अशोक मिश्रमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालयवर्धा
केन्‍द्रीय सचिवालय ग्रंथागारद्वितीय तलशास्‍त्री भवनडॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद मार्गनई दिल्‍ली-110001,
editorsanskriti@gmail.com
4/19, आसफ अली रोडनई दिल्‍ली-110002,
sahityaamrit@gmail.com
उत्‍तर प्रदेश हिन्‍दी संस्‍थान, 6 महात्‍मा गांधी मार्गहजरतगंजलखनऊ-226001
राज्‍य शिक्षा केन्‍द्रबी-विंगपुस्‍तक भवनअरेरा हिल्‍स,भोपाल-462011
डॉ॰ जगदीश व्योमनगर राजभाषा कार्यान्वयन   समितिप्रतिभूति कागज कारखानाहोशंगाबाद (म.प्र.) 461005
प्रधान संपादक- umesh kumar singh, साहित्य अकादमीमध्य प्रदेश संस्कृति परिषदसंस्कृति भवनबाण गंगाभोपाल-3 (म.प्र.)
sakshatkarnew@gmail.com
निदेशक भाषा विभाग पंजाबभाषा भवनपटियाला
वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेडकोल स्टेटसिविल लाइन्स,नागपुर-440001
403, कृष्णा आंगनआर.एन.पी. पार्कभाईंदर (पूर्व) मुबंई-401105 (महाराष्ट्र)
www.prabhatpunj.com
editor.prabhatpunj@gmail.com
6/395 'माया हाउस', मालवीय नगर,जयपुर-302017 (राज०)
mayaindia2005@hotmail.com
हरियाणा साहित्य अकादमीकोठी नं० 169, सेक्टर-12, पंचकूला (हरियाणा)-134112
संपादक: मदनमोहन उपेन्द्रए-10, शान्ति नगर (संजय नगर),मथुरा- 281001(उ॰प्र॰)
हाइकु दर्पण (हाइकु कविता की पत्रिका)
संपादक: डा० जगदीश व्योमबी-12 ए / 58-धवलगिरिसेक्टर-34, नोएडा-201301
मेकलसुता(दोहा विधा की पत्रिका)
संपादक- कृष्णस्वरूप शर्मा 'मैथिलेन्द्र', गीतांजलि भवनम॰आ॰व॰ 08आवासीय मण्डल उपनिवेशिकानर्मदापुरम् (होशंगाबादम॰प्र॰ 461001
संपादक-हेमन्त रिछारियाकोठी बाजारहोशंगाबाद(म॰प्र॰)
शैल सूत्र(गंगा-जमुनी साहित्य की त्रैमासिकी)
प्रधान संपादक: आशा शैलीकार रोडबिन्दुखत्तापो० लाल कुआँनैनीतालउत्तराखण्ड -262402
asha.shaili@gmail.com
संपादक- डॉ॰ रमाकान्त श्रीवास्तवएल॰ 6 \ 96, अलीगंज,लखनऊ (उ॰प्र॰)-226024
संपादक-सुरेन्द्र सिंह चौहान "काका"मानसरोवरछिब्बरमार्ग,देहरादून-248001 उत्तरांचल
संपादक-दिलीप कुमार सिंह"राजभाषा विभागभारत कोकिंग कोल लिमिटेडकोयला भवनकोयला नगरधनबाद-826005 झारखंड
संपादक-दिलीप कुमार सिंहनगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति धनबादराजभाषा विभागभारत कोकिंग कोल लिमिटेडकोयला भवनकोयला नगरधनबाद-826005 झारखंड
व्यंग्य यात्रा(सार्थक व्यंग्य की त्रैमासिकी)
संपादक: प्रेम जनमेजय,73- साक्षर अपार्टमेंट्सए-3, पश्चिम विहार,नई दिल्ली-110063
vyangya@yahoo.com


ऑनलाइन वेब पत्रिकाएं
पत्रिका का नाम
प्रकार
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डॉ प्रणव पाण्ड्या
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साप्ताहिक (ऑनलाइन)
साहित्यिक पत्रिका
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साहित्यिक पत्रिका
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साहित्यिक पत्रिका
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हिंदीनेस्ट. कॉम
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राजनैतिकसामाजिकसांस्कृतिकखेलमनोरंजन इत्यादि।
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देहरादून
साप्ताहिक
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दि इंडिया टुडे ग्रुप
साप्ताहिक
ऑन लाइन हिन्दी पत्रिका
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साप्ताहिक ऑनलाइन
साप्ताहिक पत्रिका
अवनीश सिंह चौहान
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प्रवक्ता.कॉम
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साहित्यिक पत्रिका
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स्वर्गविभा टीमनवी मुंबई,
त्रैमासिक
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सामाजिक-राजनीतिक पत्रिका
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दैनिक ऑनलाइन
साप्ताहिक प्रिंट
साहित्य
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ऑनलाइन/ऑफलाइन विज्ञान पत्रिकाएं
पत्रिका का नाम जन स्वास्थ्य धारणा
समपादकीय पता राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थानमुनिरकानई दिल्ली
वेब पता www.nihfw.org
ई मेल पता hindicell@nihfw.org
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्चपी.ओ. बॉक्‍स नं. 4911, अंसारी नगरनई दिल्‍ली-110029,
headquarters@icmr.org.in
नेशनल रिसर्च डेवलेपमेंट कार्पोरेशन, 20-22, जमरूदपुर सामुदायिक केन्‍द्रकैलाश कॉलोनी एक्‍सटेंशननई दिल्‍ली-48
स्‍कोप कैम्‍पसएन.एच.-12, होशंगाबाद रोडभोपालम.प्र.,
राष्‍ट्रीय जल विज्ञान संस्‍थानजल विज्ञान भवनरूड़की-247667,
विज्ञान प्रसारसी-24, कुतुब इंस्‍टीट्यूशनल एरियानई दिल्‍ली-दिल्‍ली-110016,
77, कैनाल रोडशिव कालोनीलखीमपुर खीरी- 262701, उ.प्र.,
डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित, 19 पत्रकार कॉलोनीरतलाममप्र 457001,
इमेज मीडिया ग्रुप, 518, हिंद नगर चौराहापुरानी चुंगीकानपुर रोडलखनऊ-226012
प्रधान संपादक : डॉ. राजीव रंजन उपाध्‍यायसंपर्क : भारतीय विज्ञान कथा लेखक समितिपरिसर कोठी काकेबाबूदेवकली मार्गफैजाबाद, (उ. प्र.)-224001,
सी.एस.आई.आर.डॉ. के। एस. कृष्‍णन मार्गनई दिल्‍ली-110012,
ऑनलाइन/ऑफलाइन महिला पत्रिकाएं[संपादित करें]
पत्रिका का नाम
संपादकीय पता
वेब पता
ई मेल संपर्क
के-25, पर्ल्‍स प्लाजासेक्टर-18, नोएडा-201301, उत्तर प्रदेश
संपादकीय एवं प्रशासकीय संपर्क : पायोनियर बुक कंप्रालि0, सी-14, रॉयल इंडस्ट्रियल एस्‍टेट, 5-बीनयागांव क्रॉस रोडवड़ाला,मुम्बई-400031 (महाराष्ट्र)।
मित्र प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेडमुट्ठीगंजइलाहाबादउत्तर प्रदेश
के-45, जंगपुरा एक्‍सटेंशननई दिल्‍ली-110014
जे-17, जंगपुरा एक्‍सटेंशननई दिल्‍ली-110014
दिशा भारती मीडिया प्रा.लि.ए-96, सेक्‍टर-65, 1 नोएडा-20130 उत्तर प्रदेश
info@dishabharti.com
जागरण प्रकाशन लि., 2, सर्वोदय नगरकानपुर-208005, उत्तर प्रदेश
jagrancorp@jagran.com
13/14, आसफ अली रोड,नई दिल्‍ली-110002
मलयाला मनोरमापोस्ट बॉक्स नं 26, कोट्टयम-686 001,केरलभारत
customersupport@mm.co.in

ऑनलाइन/ऑफलाइन फिल्‍मी पत्रिकाएं
हिंदी में करीब 75 फिल्मी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। छोटी-बड़ी सब मिलाकर कम से कम तीन दर्जन फिल्मी पत्रिकाएं तो अकेले दिल्ली से प्रकाशित होती हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से प्रकाशित होने वाली फिल्मी पत्रिकाओं के नाम इस प्रकार हैं-
चित्र भारती मासिक (कलकत्ता1955 से प्रकाशित)सिने चित्रा साप्ताहिक (कलकत्ता1955 से प्रकाशित)सिने वाणी सा. (बंबई1956 से प्रकाशित)कला संसार सा. (कलकत्ता 1957 से प्रकाशित)सिने सितारामा. (कलकत्ता1957 से प्रकाशित)रजत पट पाक्षिक (महू छावनी1957 से प्रकाशित)रसभरी मा. (दिल्ली से प्रकाशित)फिल्मिस्तान मा. (फिरोजपुर1958 से प्रकाशित)फिल्म किरण मा. (जबलपुर1959 से प्रकाशित)चित्र छाया मा. (दिल्ली1959 से प्रकाशित)इंदुमती मा. (दिल्ली1959 से प्रकाशित)सिने एक्सप्रेस सा. (इंदौर1959 से प्रकाशित)चित्रावली सा. (बंबई1959 से प्रकाशित)प्रीत मा. (जोधपुर1959 से प्रकाशित)नीलम मा. (दिल्ली1960 से प्रकाशित)मधुबाला मा. (दिल्ली1960 से प्रकाशित)मनोरंजन मा. (दिल्ली1962 से प्रकाशित)रस नटराज सा. (बंबई1963 से प्रकाशित)कजरा मा. (कानपुर1964)फिल्म अप्सरा मा. (दिल्ली1964)बबीता मा. (दिल्ली1967)सिने पोस्ट मा. (दिल्ली1968)फिल्म रेखा मा. (दिल्ली1968)फिल्‍मी कलियां मा. (दिल्ली1968)फिल्मांकन सा. (बंबई1969),सिने हलचल पा. (अजमेर1969 से प्रकाशित)अभिनेत्री पा. (लुधियाना1970 से प्रकाशित)फिल्म शृंगार मा. (दिल्ली1970 से प्रकाशित)फिल्मी परियां मा. (लखनऊ1970 से प्रकाशित)फिल्म संसार मा. (मेरठ1970 से प्रकाशित)फिल्मी कमल मा. (मेरठ1970 से प्रकाशित)फिल्म अभिनेत्री मा. (मेरठ1970 से प्रकाशित)पूनम की रात सा. (जबलपुर1970 से प्रकाशित)चित्र किरण सा. (बंबई1970 से प्रकाशित)सिने हलचल मासिक (दिल्ली1971 से प्रकाशित)।
इसके अलावा बंबई से प्रकाशित उर्वशी (पत्रिका)कलकत्ता से प्रकाशित स्क्रीन हैं। पाक्षिक केवल एक ही निकलती हैमाधुरी। मासिक पत्रिकाओं में फिल्‍मी दुनियासुषमा पत्रिकापालकीफिल्‍मी कलियांरंग भूमितथा चित्रलेखा (पत्रिका)राजधानी से प्रकाशित होती हैं और रजनी गंधा बंबई में। इन फिल्मी पत्रिकाओं के अतिरिक्त मेनकायुग छायानव चित्र पटराधिकाफिल्मांजलिछायाकारप्रिया भी नियमपूर्वक प्रकाशित हो रही हैं। माधुरी को छोड़ शेष सभी फिल्मी पत्रिकाएं कथा-साहित्य प्रकाशित करती हैं। पालकी और आसपास में अच्छी फिल्मी सामग्री के अतिरिक्त अन्य कई विषयों पर भी सामग्री दी जाती है।[7]
कुछ फिल्मी पत्रिकाओं की जानकारी विस्तार से :
पत्रिका का नाम
संपादकीय संपर्क
वेब संपर्क
ई मेल संपर्क
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : 94, बनारसीदास एस्‍टेटतिमारपुर (निकट माल रोड)दिल्‍ली-110004
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : 4675/21, अंसारी रोडदरियागंजनई दिल्‍ली-110002
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : 16, दरियागंज,नई दिल्‍ली-110002
ऑनलाइन/ऑफलाइन बाल पत्रिकाएं[संपादित करें]
पत्रिका का नाम
समपादकीय संपर्क
वेब संपर्क
ई मेल संपर्क
[बाल प्रभा]]
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क श्री गाँधी पुस्तकालयचौकशाहजहांपुर उत्तर प्रदेश-242001
dr.nagesh.pandey.sanhay@gmail.com
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : 17/239, ज़ेड, 13/59, पंचनगरीअलीगढ़-202001, उ.प्र.,
abhinavbalmann@gmail.com
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : ई-10, शंकर नगरबीडीए कॉलोनीशिवाजी नगरभोपाल-462016
chakmak@eklavya.in
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : ऑफिस बी-3, लुनिक इंडस्‍ट्रीजक्रास रोड ‘बी’, एम.आई.दी.सी.अँधेरी (ईस्ट)मुंबई-400093 (महाराष्ट्र)
chandamama@chandamama.com
दिल्‍ली प्रेस भवनई-3, झंडेवाला एस्‍टेटरानी झाँसी मार्गनई दिल्‍ली-110055,
article.hindi@delhipress.in
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : 40, संवाद नगरइंदौर-452001 (मध्‍य   प्रदेश),
devputraindore@gmail.com
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : हिंदुस्‍तान टाइम्‍स हाउस, 18-20, कस्‍तूरबा गाँधी मार्गनई दिल्‍ली-10001,
nandan@livehindustan.com
6, द्वारिका सदनप्रेस कॉम्‍पलेक्‍सएम0पीनगरभोपाल-11
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : उत्‍तर प्रदेश हिन्‍दी संस्‍थान, 6 महात्‍मा गांधी मार्गहजरतगंज,लखनऊ-226001
संपादकीय सह प्रशासकीय संपर्क : दिल्‍ली प्रेस भवनई-3, झंडेवाला एस्‍टेटरानी झाँसी मार्गनई दिल्‍ली-110055,
article.hindi@delhipress.in
ऑनलाइन वेब पोर्टल
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·        रचनाकर[18]
·        लेखक मंच[20]
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मुक्तिबोध को जब कोई प्रकाशक छापने को तैयार नहीं थातब ‘कल्पना’ और ‘वसुधा’ ने उन्हें पहचाना। आधुनिक काव्यशास्त्र का मूर्धन्य ग्रंथ ‘एक साहित्यिक की डायरी’ सबसे पहले ‘वसुधा’ में धारावाहिक रूप से छपा। नई कहानी का आंदोलन ‘नई कहानियाँ’ पत्रिका ने छेड़ा और प्रतिष्ठित किया। ‘सारिका’, ‘साक्षात्कार’, ‘पूर्वग्रह’, ‘दस्तावेज’, ‘पहल’, ‘वसुधा’, जैसी पत्रिकाएँ समकालीन साहित्य को जानने-समझने के लिए अनिवार्य हैं। हिन्दी में यदि पत्र-पत्रिकाएँ न होतीं तो बहुत सारा साहित्य छपने से रह गया होता या वक्त पर नहीं छप पाता।|"वेब पत्रिका सृजनगाथा में डॉ. हरिसिंह गौर"
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इन्हे भी देखें
संदर्भ
1.   सृजनगाथा में ज़ाहिद खान का आलेख : प्रतिरोध के सामूहिक स्वर, परतंत्र भारत में प्रतिबंधित पत्र-पत्रिकाएँ
2.   [http://www.rachanakar.org/2009/09/blog-post_15.html वेब पत्रिका रचनाकार, वीरेन्द्र सिंह यादव का आलेख : हिन्‍दी साहित्‍य के इतिहास में पत्र-पत्रिकाओं की प्रासंगिकता एवं उपादेयता।
3.   वेब दुनिया, हिन्दी में गायत्री शर्मा का आलेख : गौरवशाली भाषा हिंदी
4.   Circulation as Claimed by Publisher for 2005-06
5.   Aanubhuti-A complete classic collection of Hindi Poetry
6.   Seemapuri Times - Hindi News Magazine: Social & Political Magazine
7.   1976 में वेद प्रकाश वैदिक द्वारा संपादित ग्रंथ हैं हिंदी पत्रकारिता, विविध आयाम में प्रकाशित लेख
8.   समाचार4 मीडिया नें आंकड़ों की जानकारी
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   बाहरी कड़ियाँ
मलयालम पत्रिका, ‘वनिता26.53 लाख पाठकों के साथ देश की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली   पत्रिका हो गई है। हिंदी मासिक पत्रिका, ‘प्रतियोगिता दर्पणने अपनी रीडरशिप में बढ़ोतरी की है। इसकी पाठक संख्या बढ़कर 20.27 लाख हो गई है। और इसने दूसरा स्थान बनाने में सफलता हासिल की है। इसी के साथ, तीसरे स्थान पर रही हिंदी पत्रिका, ‘सरस सलिलकी पाठक संख्या में भी इजाफा हुआ है। इसकी पाठक संख्या अब 19.45लाख हो गई है। चौथे स्थान पर, अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका, ‘इंडिया टुडेने अपने कुछ पाठक खोये हैं। इसकी पाठक संख्या 17.57 लाख से घटकर 16.50 लाख रह गई है। पांचवें स्थान पर साप्ताहिक पत्रिका, ‘मलयाला मनोरमा14.13 लाख पाठकों के साथ रही। जबकि, हिंदी साप्ताहिक पत्रिका, ‘इंडिया टुडेकुछ पाठकों की कमी के साथ छठे स्थान पर रही। इसकी पाठक संख्या घटकर 11.37 लाख रह गई है। मेरी सहेली11 लाख पाठकों के साथ सांतवें स्थान पर, ‘तमिल कुमदुम10.66 लाख पाठकों के साथ आठवें स्थान पर, हिंदी पत्रिका, ‘गृहशोभा10.61 लाख पाठकों के साथ नौवें स्थान पर और गृह लक्ष्मी10.31 लाख पाठकों के साथ दसवें स्थान पर रही।      
—"आईआरएस के 2011 के आंकड़ों के अनुसार"
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81

साभार विकिपीडिया 

हिन्दी विभाग में मनाया गया हिन्दी दिवस 14 सितंबर 2018

          सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 12 से 14 सितंबर 2018 को हिन्दी दिवस दिवस के रूप में मनाया ग...